एक टूटता सपना और जागरण!
18 मई 2025 की वह शाम, श्याम से भी ज्यादा काली थी। कोलकाता के शोभाबाज़ार इलाक़े में अचानक फैली हिंसा ने कई ज़िंदगियाँ तबाह कर दीं। उन्हीं में से एक थे संजय बंदोपाध्याय। संजय एक ऊपरी मध्यमवर्गीय परिवार से थे, एक शिक्षित और सजग नागरिक। उनकी पत्नी मेघना, एक स्कूल शिक्षिका थीं और उनकी दो संतानें—आठ साल की रत्ना और तीन साल का रोमी—उनके जीवन की धड़कन थे। यह परिवार सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष था। उनके जीवन में हिंदू-मुस्लिम का कोई भेद नहीं था। संजय के बचपन के दोस्त इमरान, शरीफ, और नासिर आज भी उनके परिवार का हिस्सा जैसे थे। लेकिन उस दिन सब कुछ बदल गया। अचानक आई एक अफवाह ने पूरे मोहल्ले को आग में झोंक दिया। सैकड़ों की संख्या में लोग, जिनकी आँखों में ग़ुस्सा और हाथों में हथियार थे, सड़कों पर उतर आए। शोर, चीखें, और धुएं की लपटों में इंसानियत कहीं खो गई थी। संजय अपने परिवार को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश में लगे थे। मेघना ने रत्ना और रोमी को कसकर पकड़ा हुआ था। पर हालात बेकाबू थे। उनके घर को आग के हवाले कर दिया गया। संजय और उनका परिवार किसी तरह पीछे की गली से भाग निकले, लेकिन उनका वर्षों का संज...