संदेश

वो कौन था ?

सन 1999 , अपना आखरी असाइनमेंट ख़त्म करके अनिल रात के १० बजे ड्राइव करके दिल्ली से फरीदाबाद के लिए निकला। 1999 में आज की तरह आसान नहीं था दिल्ली से फरिदाबाद पहुचना। ज़ादातर रास्ते बबूल के झाड़ीयों वाले जंगलों से होकर गुज़रती थी। अनिल में सवर्गीय मेजर अजय मलहोत्रा का खून है।  उनके छोटे सुपुत्र भी, बड़े सुपुत्र की ही तरह निडर व्यक्ती है। बड़े सुपुत्र विनय मल्होत्रा कश्मीर के सुपोरे जिले में राष्ट्रीय राइफल्स में कार्यरत है।  अनिल के लिए ये जंगलों वाला रास्ता आवर अँधेरा आम बात थी।  कोहरे की समस्या थी, पर वो मैनेज कर लेता था।   आज कोहरा कुछ ज़ादा ही घाना था।  अनिल बड़े धीरे धीरे गाड़ी बढ़ा रहा था।  कुछ आधा घंटा बीता होगा ,  गुप्त अँधेरे को चीरती उनसके दाढ़ी की फोग लाइट्स के इलावा कोई रौशनी थी नहीं आस पास।  अचानक एक तेज़ आखे चौधयानी वाली रौशनी आई आवर एक डॉम से चली भी गई।  अनिल कुछ समझ पता उससे अहले सं कुछ हो चूका था।  अनिल ने देखा दूर स्ट्रीट लाइट्स की टिमटिमाती रौशी दिख रही है।  पर अभी तो आधा जानता ही बीता है।  डेढ़ घंटे का सफर है और आज वो धीरे भी चला रहा है कोहरे के कारन।  फिर इतनी जल्दी फरीदाबाद क

अनजान स्टेशन

मेरा नाम राकेश है। मैं एक हीरा तराशने वाला मजदूर हूँ।  मेरा निवास सूरत गुजरात में है, वैसे मैं मूलतः बिहार  भागलपुर का हूँ।   पेट की आग इंसान को अपने मिट्टी  से दूर कर देती है साहब, वरना  गाँव  देहात  छोड़ कौन जाना  चाहता है? आज पुरे १ साल बाद गाँव  जाने के लिए  निकला हूँ।  छोटी बहन की शादी करनी रही तभाइ गाँव जा रहे है।  रात के टिरेन में बड़ी मुस्किल से बैठने का जगह मिला है।  टिरेन चल पड़ी है हम दरवाजे के पास की सीट पर खड़की के पीठ लगाए कम्बल ओढ़े बैठे है।  खिड़की का कांच वाला शटर पूरा नहीं उतरता है, हवा मरता है। रात और घना हो गया है।  टिरेन की आवाज के इलाबा बस जुगनू सुनाई पड़ता है।  हम को थोड़ा अजीब लगा इतने लोग है डिब्बा में, एक आदमी नहीं जग रहा है।  कोई खर्राटा ही मार रहा होता ! ना पुलिस आई ना टीटी। पिछला  स्टेशन में रुके काफी समय हो चूका था।  खिड़की के बहार चारो तरफ गुप्त अँधेरा। टिरेन सतपुरा और विंध्याचल के पर्बतों के बीच से सरपट दौड़ रही थी।  हमको जाने कहे नींद नहीं आ रही थी।  खिड़की के बहार अँधेरे में कोई रौशनी दिखे की नहीं इसी आस में ताके रहे।  फिर ठंडी हवा ने आँखों को बंद करवा ही दिया। 

प्राप्ती

प्रमोद कुमार नन्दी जी एक निम्न मध्यवित्तीय परिवार के मुखिया हैं।  उनके परिवार में उनकी पत्नी रेखा नन्दी (गृहणी व नीजी अनुशिक्षक), उनके जुड़वा बच्चे, बेटी चित्रा व बेटा आनंद हैं। "हर जुड़वा हमशक्ल नहीं होते"। प्रमोद जी राज्य सरकारी क्लर्क है। ईमानदार है इसलिए धन की कमी तो होनी ही है।  चित्रा और आनंद दोनों ने इसी साल बारवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है। चित्रा पढ़ाई में शुरू से तेज़ थी. विज्ञानं शाखा में उत्तीर्ण होने के बाद भी परिवार के आर्थिक पारिस्थितियों के चलते कला विभाग में जाना पड़ रहा है। अब वह अंग्रेजी साहित्य लेकर एक सरकारी महाविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने वाली है। आनंद पढ़ाई में औसत दर्ज़े का छात्र है।  उसका मन पढ़ाई से ज़ादा चरूकला और स्टाइल में लगता है। प्रमोद जी  की आर्थिक स्थिति आनंद के सपनो की उड़ान के पंख रोके हुए है अतः सरकारी महाविद्यालय में व्यवसाय विभाग से स्नातक की पढ़ाई  मजबूरी है। प्रबोद जी का परिवार सिंथी कोलकाता इलाके में एक 2bhk अपार्टमेंट में किरायेदार है। वैसे प्रमोद जी की  अपनी पैतृक संपत्ति सिंथी में ही है।  पर वह एक प्राचीन बांग्ला है "श्री धाम महल