प्राप्ती


प्रमोद कुमार नन्दी जी एक निम्न मध्यवित्तीय परिवार के मुखिया हैं।  उनके परिवार में उनकी पत्नी रेखा नन्दी (गृहणी व नीजी अनुशिक्षक), उनके जुड़वा बच्चे, बेटी चित्रा व बेटा आनंद हैं। "हर जुड़वा हमशक्ल नहीं होते"। प्रमोद जी राज्य सरकारी क्लर्क है। ईमानदार है इसलिए धन की कमी तो होनी ही है।  चित्रा और आनंद दोनों ने इसी साल बारवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है। चित्रा पढ़ाई में शुरू से तेज़ थी. विज्ञानं शाखा में उत्तीर्ण होने के बाद भी परिवार के आर्थिक पारिस्थितियों के चलते कला विभाग में जाना पड़ रहा है। अब वह अंग्रेजी साहित्य लेकर एक सरकारी महाविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने वाली है। आनंद पढ़ाई में औसत दर्ज़े का छात्र है।  उसका मन पढ़ाई से ज़ादा चरूकला और स्टाइल में लगता है। प्रमोद जी  की आर्थिक स्थिति आनंद के सपनो की उड़ान के पंख रोके हुए है अतः सरकारी महाविद्यालय में व्यवसाय विभाग से स्नातक की पढ़ाई  मजबूरी है।

प्रबोद जी का परिवार सिंथी कोलकाता इलाके में एक 2bhk अपार्टमेंट में किरायेदार है। वैसे प्रमोद जी की  अपनी पैतृक संपत्ति सिंथी में ही है।  पर वह एक प्राचीन बांग्ला है "श्री धाम महल ", करीब १९० साल पुराना माकन है। ये मकान ही उनके सरदर्द का कारन बना हुआ है आजकल। हमारी कहानी यहीं से शुरू होती है।

सीन १
स्थान: प्रमोद जी का घर
समय : रात के खाने का समय
पूरा परिवार खाने के मेज़ पर इखट्टा बैठा है। प्रमोद जी के कपार पर चिंता की रेखाएं स्पस्ट है। पिता के भाव को समझते हुए आनंद इस बात से घबराया हुआ है, कि कहीं उसकी शिकायत पिताजी के कानो तक ना  पहुंची हो। पिता की चिंता का कारन क्या है चित्रा को भी परेशान कर रही थी।  पत्नी रेखा बार बार पूछ रही थी "बताओ तो सही अब क्या हुआ?" पत्नी को शायद लग रहा है कि आम दिनों की तरह उनके पतिदेव का दफ्तर के कीसी अफसर से अनबन हो गई हो।

प्रमोद जी : हुम्म्म! आज दफ्तर से आते वक़्त क्लब के लड़कों ने मुझे क्लब के अंदर बुलाया था। मैंने तुम लोगो को बताया नहीं, पिछले कई दिनों से ये लड़के मेरे पीछे पड़े हुए है हमारे "गौतमी नीड़" को प्रमोटिंग के लिए। मैंने मन कर दिया था।

रेखा:  मना कर दिया ? आपको तो पता है हमारी आर्थिक स्थिति क्या है! ये अच्छा मौका नहीं था?

प्रमोद जी : चाचाजी ने हमको बिना बताये ही बंगले को हेरिटेज बिल्डिंग तालिका में डलवा रखा था।  खुद पी. डब्लिउ. डी ऑफिस में २२ साल से जॉब कर रहा हूँ पिछले पांच साल से कोशिश करके हार गया बंगले की स्टैटस को नहीं बदल पाया। ये कह रहे है हम सम्हाल लेंगे। वैसे भी बांग्ला नहीं है वो मेरा जन्मस्थान है। यादें ज़ुड़ी हैं मेरी।

रेखा : तो ? इसमें चिंता करने वाली क्या बात हो गई?


प्रमोद : लेकिन बात इतनी सी होती तो मै चिंता नहीं करता। ये लोग अब धमकी और गुंडागर्दी तक उतर आये हैं। चित्रा कॉलेज आते जाते पीछे की सड़क इस्तेमाल करो। आनंद अपने बहन का ख्याल रखो।  पर हीरो बनने की ज़रूरत नहीं। समस्या जब तक टाली जा सके उसे टालते रहो।

आनंद :  प प... पापा ?

प्रमोद जी: हां बोलो, क्या बोलना चाहते हो?
 आनंद: ुहम्म... , क्या समस्या को टालते रहना समस्या से भागना नहीं होगा ? समस्या का समाधान तो समस्या का मुकाबला करने से मिलता है।

प्रमोद जी:  कोई ज़रुरत नहीं है हीरोगिरी दिखने की। सोचना भी मत। तुमको कुछ पता नहीं, वो कितने खतरनाक लोग है।

आनंद : पर डर डर कर कैसे जीयेंगे ?  और कब तक?

प्रमोद जी : मैं कुछ करूँगा इस बारे में।  पर तुम नहीं। तुम कुछ नहीं करोगे।  (फेड टू ब्लैक)


फेड इन फ्रॉम ब्लैक

सीन २
स्थान : प्रमोद जी  का ऑफिस
समय : सुबह

प्रमोद जी और उनके सहकर्मीगण अशोक जी , जीवन जी, प्रणय जी , अपने अपने स्थान पर बैठे हुए है।  प्रणय जी अखबार में मुँह गढ़ाए लाटरी के नंबर मिलाने में व्यस्त है।  जीवन जी ताश की गड्डी निकाल कर तैयार हो रहे है।  अशोक जी आते ही प्रमोद जी  के चेहरे पर लगी चिंता की लकीरों को भाप गए।  यहाँ बता दे, अशोक जी प्रमोद जी के घनिष्ट मित्र है।
 प्रमोद जी से सारी बातों को सुनने के बाद, अशोक जी : " बेटी की इज़्ज़त, बेटे की जान और परिवार के सर पर छत, इससे क्या वो धरोहर ज़्यादा कीमती है तेरे लिए ?

प्रमोद जी : और मेरे उसूल, मेरी सच्चाई मेरी ईमानदारी?

अशोक जी : तू जिन चीज़ों का दम भर रहा है  उसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है। दिल पर हाथ रखकर बता, क्या तू तैयार है वो मूल्य चुकाने के लिए?

प्रमोद जी : पर कैसे,  मुझे मेरे उसूल, मेरे आदर्श चाहिए, पर .. , परिवार ?

अशोक जी : देख प्रमोद ! अतीत के लिए वर्तमान को खोना मूर्खता होती है।  तूने तो वर्तमान ही नहीं भविष्य भी दाओ पे लगा  दिया है।  अब ध्यान से सुन, प्रॉपर्टी स्टेटस डिवीज़न का अफसर मेरे बहनोई का  मामा है।  मैं सम्हाल लूंगा तू  आएगा।  कसम खा मेरी।

प्रमोद जी : ठीक है.... !

अशोक जी : चल तू फाइल्स निपटा मैं तेरी समसया का कुछ करके आता हूँ।  (कैमरा दूसरे सहकर्मियों को दिखते हुए फेड तो ब्लैक।)


सीन ३
स्थान : प्रमोद जी का फ्लैट
समय : शाम के ६:३० बजे

प्रमोद जी की फ्लैट की कालिंग बेल बज उठी ! टिंग टोंग (३)

रेखा जी : कौन है ?

सोसाइटी का सेक्रेटरी : मैं हूँ भाभी जी, रमेन।

रेखा जी : वो तो अभी तक लौटे नहीं है।

रमेन : एक नोटिस है आप को ही दे जाता हूँ।  भाईसाहब आये तो उन्हें दे दीजियेगा।

रेखा जी दरवाज़ा खोलती है।  बाहर रमेन हालदार खड़ा मिला, उम्र ४५, विपत्नीक और लंपट प्रकृति का व्यक्ती है। एक सैंडो बनियान और चेक लुंगी पहने सारे अप्पार्टमेन्ट में लोगो के घर तांक झांक करना उसका रोज़ का काम है। बिल्डिंग की सोसाइटी का कोई चुनाव नहीं होता क्यों की जादातर रहनेवाले किरायेदार है और रमेन क्योंकि प्रमोटर का साला है इसलिए सोसाइटी का सेक्रेटरी  है।

रमेन से नोटिस लेते वक़्त रमेन ने रेखा जी के हात को गंदे तरीके से छुआ और फिर आँख मारी। नीचे सीढ़ी से किसीके चढ़ने की आवाज़ आते ही रमेन ने अपने अरमान समेट लिए और नीचे चला गया।


 सीन ४

नीचे उतरते वक़्त उसे प्रमोद जी मिले।

रमेन : अरे प्रमोद बाबू , भाभी को देके आया हूँ। ले लिया है उन्होंने।  

प्रमोद जी : (तयोधियाँ चढ़ाकर ) क्या?

रमेन झेपते हुए : नोटिस, फ्लैट के मालिक का।

प्रमोद जी एक तरफ संतोष में थें कि , रमेन ने मौका पाकर रेखा के साथ ऐसी वैसी हरकत नहीं की , और  दूसरी ओर माकन मालिक का नोटिस उनके परेशान कर रहा था।  तेज़ी से बाकी सीढ़ियां चढ़कर घर के दरवाज़े तक पहुंचे तो रेखा जी दरवाज़ा बंद ही करने वाली थी।

रेखा प्रमोद जी को देखते ही अपने मन में डर और बच जाने के संतोष लिए उनके गले से लिपट गई।

प्रमोद जी भी समझ गए कुछ गन्दा होते होते रह गया।  प्रमोद जी और रेखा जी में आपसी भरोसे की कोई कमी नहीं है।

प्रमोद जी और रेखा जी अंदर गए. फ्लैट का दरवाज़ा बंद हुआ।

सीन ५

अंदर आते ही प्रमोदजी की नज़र टेबल पर पड़े नोटिस के लिफाफे पर गई।  उन्होंने लिफाफा उठाया तो उसे सील्ड पाया। उन्होंने खोलके देखा तो उनके पाँव से जैसे ज़मीन खिसक गई।  फ्लैट के मालिक ने माकन खली करने का लीगल नोटिस पकड़ा दिया है। इतना ही नहीं, आर्थिक तंगी के चलते जिस फ्लैट मालिक ने साहर्ष सहयोग करते हुए किराये का एक हिस्सा कम कर दिया था अब पिछले ५ साल के किराये का वो बाकी का हिस्सा १५% प्रति माह के दर से सूद जोड़ कर देने को कहा है।  

रेखा जी प्रमोद जी से नोटिस की चिठ्ठी लेते हुए उस पर नज़र दौड़ती है।  इस बार होश रेखा जी के उड़े।  प्रमोद जी ने कपडे नहीं बदले और बाहर जाते हुए रेखा जी से बोल गए
"मुझे लौटने में देर  होगी।  तुमलोग रात का खाना खा लेना। दरवाज़े पर कौन है, ऑई  होल से देखकर ही खोलना। मैं साहू जी से मिलकर आता हूँ। " (साहू जी फ्लैट के मालिक है।)

फेड टू ब्लैक। 

सीन ६ 
स्थान: प्रमोद जी का घर
समय : सुबह के नाश्ते का। 

चित्रा और आनंद नाश्ता करते हुए।  गुमसुम से गंभीर से दिख रहे है।  चित्रा का गंभीर होना आम बात है। आज तो आनंद बड़ा अजीब लग रहा है।  कल रात कोई भयंकर खबर मिली है उन्हें ये आनंद का चुपचाप हो जाना और चित्रा के माथे पर पड़े  बल साफ़ कर गए है।  

दूसरे कमरे से रेखा जी में आनंद को आवाज़  लगाई।  "आनंद , नाश्ता ख़तम करके अपने कमरे के सभी सामान समेटना शुरू करो।"

* साहूजी थोड़े दयालु निकले, बकाया रकम माफ़ किया, पर फ्लैट छोड़ना पड़ेगा ही।  उन्होंने अपने दूसरे फ्लैट में बंदोबस्त कर दिया है पर किराया दुगना लगेगा।  साफ़ पता चल गया कि, साहू जी पर नोटिस के लिए दबाव था।

सीन ७
स्थान : प्रमोदजी का ऑफिस
समय : शाम  के ४ बजे

प्रमोदजी मुँह लटका ए अपने ऑफिस की फाइलें निपटाते हुए।  मन का भय  और चिंता की रेखाएं आखों आवर पेशानी पे साफ़ नज़र आ रहे थे।
अशोक जी पीछे से आकर अचानक  प्रमोदजी के कंधे हिला देते है  और
अशोकजी : भाई कमाल हो गया।  इतनी जल्दी तो हमारा काम भी ना हुआ कभी ! ये लो भाई प्रमोद प्रॉपर्टी के नए स्टेटस। अब चाहे इसे बेचो चाहे इसमें रहो लेकिन  चाय तो आज हमे तुम ही पिलाओगे।

प्रमोदजी आश्चर्य होकर प्रॉपर्टी के नए पेपर्स की और एक तक देखते ही जा रहे थे।  फेड टू वाइट।

सीन ८
स्थान : गौतमी नीड़ के अंदर  किसी कमरे में।  समय : शाम  ७:३० बजे।

प्रमोदजी अपने बचपन की एक एक चीज़ बड़े प्यार और जतन से उठा उठा कर एक बक्से में भरे जा रहे थे अचानक उन्हें कुछ याद आया।  शायद बचपन में छुपाई हुई कोई चीज़ जो बाद में निकला नहीं गया था।
पास के कमरे में जाके किसी दराज़ को बार बार खोलने की कोशिश करते जा रहे थे।  उन्होंने सोचा किसी औज़ार का इस दराज़ का ताला तोड़ा जाय। आस पास औज़ार ढूंढ़ते वक़्त उन्हें एक चाबी मिली। संयोग से वो  उसी दराज़ की चाबी थी।  दराज़ के खोलने पर उन्हें अपने बचपन की कई अनमोल चीज़ें मिली।  उन चीज़ों को हटाते ही उनके नीचे दराज़ का एक परत पुराण होने की वजह से टूटा हुआ मिला।  उसमे से उन्हें कुछ छनकता हुआ सुनाई  दिया।  निकालने पर पता चला वो सोने की अशर्फियाँ थी करीब ४० अशर्फियाँ, बादशाह जहांगीर के ज़माने की । प्रमोद जी के भाग्य का दरवाज़ा खुल गया. उन्होंने अशर्फियाँ संघ्रालय को बेचीं और एक नया फ्लैट  अपने नाम की खरीद ली।  गौतमी नीड़ अब वापस सरकार  की नज़र में आ गई इस बार प्रमोद जी ने इसे सरकार को सौप दिया।  अब बिल्डर्स भी कुछ नहीं कर सकते थे।  बंगले पर पुलिस का पहरा था.और अब पूरा बांग्ला संघ्रालय बना दिया गया. बादशाह जहांगीर की अशर्फिया बंगले पर लौट आई, प्रदर्शनी के लिए।

शांति का जीवन, वंश  की खोई हुई गरिमा और बच्चों की नज़र में अगाध सम्मान प्रमोद  जी को मिली अपने ईमानदारी और उसूलों की सही प्राप्ति                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वो कौन था ?

अनजान स्टेशन